Tuesday, December 28, 2004

हिंदी के बहाने

इन्टर्नेट पर जनता के हिन्दी ब्लोग्स पढ रहा हूँ. काफ़ी खुशी होती है देसी खब्तियों का नया शगल देख कर. कुछ पुराने चुटकुले दोहराते हैं, कुछ नये घडते हैं. कुछेक wanaabeez हैं अर्थात वो बाकियों जैसा बन जाना चाहते हैं मगर लियाकत नही है.
कई ब्लोग्गर्स दिमाग में आने वाले हर अंग्रेज़ी शब्द के लिए हिन्दी शब्द ही लिखने के सतत तनाव में लगते हैं. मानो सोच रहे हों -"दैय्या किसी ने मुझे खिचडी भाषा में लिखते देख लिया तो...."
व्यक्तिगत तौर पे मैं व्यंग्य को हास्य का सबसे निष्कृत्य रूप मानता हूं. खिचडी भाषा का मज़ाक उडाना आसान है मगर आपकी औलाद किस माध्यम मे पढ रही है और क्यों? ये थोथी शुद्धता है. अगर आप को हिन्दी से सचमुच प्यार है तो हिन्द को ताकतवर बनाइये - हिन्दी अपनी दासता से मुक्त होने का रस्ता ढूंढ लेगी.
हिन्दुस्तान भाषाई रूप से बंटा हुआ है - इस बारे में आप कुछ नही कर रहे मगर जो कोशिश कर रहा है अपनी जडों की तरफ़ लौटने की या किसी तरह उन से जुडे रहने की, टूटी-फ़ूटी ही सही हिन्दी लिखने की, उसकी मदद करना तो दूर हंसी जरूर उडाई जायेगी - क्या सिद्ध करना चाहते हो? भाषाई बम्मन हो? बुरा समचार है कि जनता पहले ही धर्मान्तरण के मूड मे है... प्यार से काम लो यार.

5 comments:

मिर्ची सेठ said...

बढिया लिखते है हो भाई। ऐसे ही लिखते रहो। तनिक अपनी अमरीकी लोकेश्नवा का खुलासा भी करो। जू एस तो बहुते बड़ा देश है।

debashish said...

मैं आपके कहने का मतलब समझ रहा हूँ। दोस्त सच्चाई आप जानते हैं, हम एक आजाद देश में हैं पर हमारी संस्कृति, भाषा स्वतंत्र कहाँ? हिन्दी में लिखना अपमार्केट नहीं है इसलिए शुरुआत में संकोच होता है पर शर्म नहीं होनी चाहिए। जो हिन्दी में बोलते हैं वो सोचते भी हिन्दी में ही है, ऐसे में कुछ लोगों, जो शायद भाषा पर ज्यादा अधिकार रखते हैं, को वर्तनी की गलतियों को पचाने में समय लगे। आप जिसे ब्लोग्स कहतें हैं, कुछ उसे चिट्ठे कहते हैं, मैं ब्लॉग्स कहना पसंद करूँगा। फर्क क्या पड़ता है, जब तक मंतव्य स्पष्ट हो। पर भाषा सुधारने का प्रयास करने से भी क्या फर्क पड़ना चाहिए? जवाब आप ही दें :)

Raman said...

भाषा के बारे में कुछ और बातें. मेरे एक गोरे दोस्त बता रहे थे अंग्रेज़ी दुनिया की सबसे ज़्यादा बास्टर्डाइज़्ड (bastartized) भाषा है. अंग्रेज़ी ने दुनिया के ज़्यादातर देशों से कुछ न कुछ शब्द और कुछ न कुछ प्रभाव लिये हैं लेकिन इससे अंग्रेज़ी को कुछ नुकसान नहीं हुआ बल्कि अंग्रेज़ी का शब्दकोश और ज़्यादा धनवान और प्रभावशाली हुआ है.

हिन्दी को अंग्रेज़ी या किसी और भाषा से डरने की जरुरत नहीं है. बोलचाल में हिन्दी का चलन ठीकठाक ही है और कई तरह की हिन्दी प्रचलित हैं जैसे कि खड़ी बोली , बंबईया हिन्दी , हैदराबादी हिन्दी वगैरह वगैरह. लेकिन लिखने पढने में शायद हिन्दी का चलन कम है. अब इंटरनेट में यूनिकोडित हिन्दी लिखना सरल होने से अब इस स्थिति में काफ़ी सुधार आ सकता है.

eSwami said...

आप सभी ने इतने प्रेम से पढा, आभारी हूं!

मिर्ची भई, मैं फ़िलहाल टेनेस्सी में हूँ.

देबाशीषजी, भाषा सुधारने मे‍ तो भला ही है. ससुरी शाब्दिक क्लिष्टता के आगे नौसिखिए नतमस्तक हो जाते हैं और घिसियाए हुओं को खुन्नस आ जाती है. कम्प्युटर का जब 'अभीकलित्र' बनाया जाता है तो साफ़ समझ मे आता है कि "देसी ओवर ट्राई मार रहा है इम्प्रेस मारने की". ईमान से, कभी आपनी खोपडी में पीसी देख के 'अभिकलित्र' शब्द "बाई डीफ़ाल्ट" गुंजाएमान नही हुआ. क्या ईलाज है ऐसे कलम घिसियारों का बताईये?

स्यापा इस बात का है, कि अगर कम्प्युटर का अविष्कार भारत में हुआ होता तो शब्द गढ के नाक बचाने की ज़रूरत ना पडती - फ़िर शब्द भी चुना तो ऐसा खतरनाक! :)

रमनजी, युनीकोड के परिणाम तो बहुत दूर-गामी होंगे. वैसे हिन्दी-प्रेमीजनों के लिए - ये तो बस अँगडाई है आगे और लडाई है.

आलोक said...

ईस्वामी जी, उम्मीद है कि आप जल्द ही फिर हगेंगे
यदि सोर्स्फ़ोर्ज पर डेरा डालते हैं तो पता ज़रूर बताइएगा।