Monday, December 27, 2004

कुकुरमुत्ते और इन्टर्नेट

हिन्दी से प्रेम था, हिन्दी से प्रेम है, हिन्दी से प्रेम रहेगा. चाहे जितनी भी मात्राऒं कि गलती कर लूं यह सच शाश्वत है.
हिन्दी से प्रेम क्यों है? हिंन्दी भाषी प्रदेश से हूं. हिन्दी में लिखने के लिये अपना टूल बनाने तक पर उतारू हो सकता हूं.
जब सारी दुनिया हिन्दी पेल रही थी इन्टर्नेट पे मैं कहां था? मैं नाराज़ था - फोनेटिक तरीके से लिखने के लिये हर एक अपनी अपनी फोन्ट लिए चला आ रहा है. भला उस्की फ़ोन्ट मेरी फ़ोन्ट से सजीली कैसे? फ़िर युनीकोड आया पर दुनिया के जिस हिस्से में मै‍ रहता हूं वहां ब्लोगिन्ग को हस्तमैथून के बराबर रखते हैं और चेट फ़ोरम हरम क पर्याय है. हरम मैं सब नंगे होते है हमने भी करी फोनेटिक नंगई!
बस एक दिन दिल ने जोर मारा - टूल बना दो यार पब्लिक का भला करो, एक पुराने मित्र हैं - पुराने पापी भी है, इन्टर्नेट का पूरा सन्जाल इन के कदमों में अपने सर्वर लिए खडा रहता है. बोले "यार टूल तुम्हारा ठीक है मगर छोडो कई १६ साल के लडकों ने ये चीज़ें स्कूल के प्रोजेक्ट में बना के ईन्टर्नेट पे टान्ग दीं युनीकोड आने के बाद! और बाकी तुम्हारी उमर वालों ने टूल डाउन्लोड किये और अपने चिट्ठे बना बना के चश्मे लगा लिये. "
एक तरफ़ तुरन्त हिन्दी की सेवा का दौरा ... दूसरी तरफ़ अपने बनाए हुए टूल के इस्तेमाल की खुशी. मध्यम-मार्ग - अपन ने भी एक ठीक-ठाक सा टूल उतारा इन्टर्नेट से और बदले में अपना टूल दुरुस्त कर के हरम ... मतलब फ़ोरम वालों को कोड देने की प्लानिंग - पूराने अड्डे है अपने आना-जाना लगा रहता है उधर जनता देवनागरी में मां-बहन करती रहे और क्या चाहिये जिस फ़ोरम वाले को हिन्दी लिखने कि सुविधा देना है अपने कोड कि लिन्क हाज़िर है. हिन्दी पेलने का दौरा कितना घातक हो सकता है इसका सटीक प्रमाण - पेलो और पेलने के टूल बना के दो - आखिर मेरे अन्दर का लेखक, कलाकार और शिल्पी अपना सही सन्तुलन पा ही गया - ढिंग - टिडिंग!

1 comment:

मिर्ची सेठ said...

टैं टड़ैं।