Friday, January 14, 2005

बुल्लेया की जाणां मैं कौण


(बुल्ला क्या जानूं मैं कौन?)

हाल ही में बाबा बुल्ले शाह कि ये काफ़ी फ़िर से सुर्खियों मे है, या यों बोलें की काफ़ी गा देने की वजह से एक नया कलाकार, रब्बि शेरगिल सुर्खियों मे है. मुझे तो वडोली बन्धु द्वारा गाया गया शास्त्रीय और आँचलिक या लोक संस्करण ज्यादा भाता है. दोनो कि कडियां, काफ़ी का टूटा-फ़ूटा हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है. अनुवाद मे गलती की संभावना है इस लिये पहले ही माफ़ी मांग लेता हूँ.

ना मैं मोमिन विच मसीत आँना
मैं विच कुफ़र दियां रीत आँ
ना मैं पाकां विच पलीत आँ
ना मैं मूसा न फरौन.

ना में मस्जिद में आस्था रखने वाला हूं
ना में ढोंगी कर्मकाण्डी हूं (अर्थ तान्त्रिक से भी लिया जा सकता है)
ना मैं शुद्ध ना अशुद्ध हूँ
ना मैं मूसा ना फ़रौन हूँ

बुल्ला की जाणां मैं कौण

ना मैं अन्दर वेद किताब आँ,
ना विच भन्गां न शराब आँ
ना विच रिन्दां मस्त खराब आँ
ना विच जागां ना विच सौण

ना मैं वेद ना कुरान पढने वाला
ना भांग ना शराब पीने वाला
ना मैं शराबीयों में मस्तवाला
ना जागों में ना सोने वाला

बुल्ला की जाणां मैं कौण

ना विच शादि ना गमनाकि
ना मैं विच पलीति पाकि
ना मैं आबि ना मैं खाकि
ना मैं आतिश ना मैं पौण

ना खुशों ना नाखुश हूँ
ना स्वच्छों में ना अस्वच्छ हूँ
ना पानी का ना मिट्टि का हूँ
ना अग्नि ना वायू से जन्मा हूँ

बुल्ला की जाणां मैं कौण

ना मैं अरबि ना लहोरि
ना मैं हिन्दि शेहर नगौरि
ना हिन्दु ना तुरक पेशावरि
ना मैण रेहन्दा विच नादौण

ना अरबी ना लहौरी
ना हिन्दिभाषी नगौरी
ना हिन्दू ना तुर्क पेशावरी
ना मेइं नादौन का वासी हूँ

बुल्ला! कि जाणा मैं कौण

ना मैं भेद मज़हब दा पाया
ना मैं आदम हव्वा जाया
ना मैं अपणा नाम धराया
ना विच बैट्ठण भौंण

ना मैं धर्म का भेद पाया
ना मैं आदम-हव्वा जाया
ना मैं अपना नाम रखवाया
ना मैं जड ना चलायमान हूं

बुल्ला की जाणां मैं कौण

आव्वल आखिर आप नु जाणां
ना कोइ दूजा होर पेहचाणां
मैंथों होर न कोइ सियाणा

स्वयं को आदी आन्त जाना
और दूजा ना कोई जाना
मुझसा सयाना कौन?

बुल्ला शाह खडा है कौण
बुल्ला शाह नामक कौन खडा है!

3 comments:

Kalicharan said...

धन्यवाद वादालि बन्धुओन की कवालि की जान कारी के लिये. -- क़ाली

Jitendra Chaudhary said...

भई संगीत का तो हमे भी बहुत शौंक है,
और सूफी संगीत की तो बात ही कुछ और है, सुनते सुनते होंश ही नही रहता, बहुत अच्छा लगता है. और बुल्ले शाह....क्या कहने.

हमारे सिन्धी मे भी सूफी संगीत का बहुत प्रयोग हुआ है, सिन्धी काफी तो बहुत मशहूर है.
एक अच्छा लिंक देने के लिये धन्यवाद.

Anonymous said...

स्वामी जी छा रहे हो। आप बुल्ले शाह के बारे में इतनी जानकारी कैसी रखते हैं? मेरी दसवी की पंजाबी पुस्तक में बुल्ले शाह पर एक पूरा पाठ था। मेरी पंसद

राँझा राँझा कहिंदे मैं आपे राँझण होई,
सद्दो नी मैंनू सारे राँझा हीर न आखो कोई

इश्क की इस से ज्यादा इंतहा क्या हो सकती है

पंकज