Monday, January 03, 2005

जन गण मन

तो साहब अन्य अनिवासी भारतीयों के साथ मनाया नया साल. हम भी भांगडे के अलावा पाश्चात्य धुनों पर थिरके. सुरा, सिगार, संगीत, सर-दर्द. बीच रात मे अपनी बारह बज गई और नया साल घोषित, उसके पहले उल्टी गिनती वगैरह.

समापन के समय एक पिए हुए को देश प्रेम जागा, बिना सावधान किए "जन गण मन" शुरु. अपन को राम भरोसे हाईस्कूल के हेड मास्साब की कसम, खटाक से सावधान कि गियर लगाई. पास खडी एक महिला ने ऐसे मूह बनाया मानो हमने अपनी ढुँगन खुजा दी हो, फ़िर सम्भल के जैसे तैसे मिले सुर मेरा तुम्हारा - दीदे घुमा के देखा दो हरित पत्र धारी धौल-धप्पा कर रहे है. एक कोने पे उसकी पत्नी/प्रेयसी के नितम्ब पर हाथ रखे 'जय जय जय जय है' अलापा. हमको आखिर में "भारत माता कि... जै" करनी थी ... नही हुई. अल्बत्ता तालियां बजाई गईं. सब सही है, चल्ता है!

उसके पहले शाम रंगारंग थी ... कजाने-केसे कसैली लगने लगी निगोडी, अपना मू सूमडे सरीका हो गया! अन्दर का मालवावासी अपने ईस्कूल का चक्कर लगा आया. चाए 'जन्गन्मन' होता था पर शब्द भोले दिल से निकलते थे सावधानी से.

हमने निःश्वास छोडी .. "नाच नाच कर थक गये यार!"

4 comments:

आलोक said...

सिर दर्द परेशान कर रहा है अभी भी।

debashish said...

एक जिज्ञासा: "उसकी पत्नी/प्रेयसी के नितम्ब पर हाथ" आपका था या उसका ही ;)

Jitendra Chaudhary said...

बहुत ही सही है,
नये साल का जश्न तो ऐसे ही मनाना चाहिये...
अपने यहाँ कुवैत मे तो सूखा पड़ा रहता है,
फिर भी हमने नया साल मनाया...
देखिये आप भीः http://www.jitu.info/gallery2/main.php

और हाँ देबाशीष भाई की जिज्ञासा का समाधान होना ही चाहिये.

eSwami said...

बन्धु, हम तो सावधान कि मुद्रा में थे. उसी का हाथ विश्राम कर रहा था. सरसरी तौर पर पढे जाने की शिकायत बकाया रही!