भोंगा पुराण - (दो)
देखें विचित्र भोंगे और जानें स्पीकर्स की पक्की परख और परीक्षण कैसे करें?
(खास स्पीकर स्टेंड)
भोंगा पुराण के पहले भाग मे स्पीकर्स के खास खास प्रकारों का तुरत-फ़ुरत जायजा लिया हमनें.
ऐसा क्यों होता है की एक से ही दिखने वाले कुछ स्पीकर महंगे होते हैं, कुछ सस्ते. कभी कभी सस्ते स्पीकर्स की आवाज ज्यादा अच्छी लगती है महंगे स्पीकर्स से. जो दुकान में अच्छा सुनाई दे रहा था घर पर वैसा अच्छा सुनाई नही दिया - क्यों?
स्पीकर्स का बाज़ार बहुत गोरखधंधा है, सही, मगर उपभोक्ता भी कुछ बातें नजर अंदाज कर जाते हैं -
पुनर्निमित ध्वनियों की गुणवत्ता सबसे अधिक स्पीकर पर ही निर्भर करती है पर आपको स्पीकर्स से दोस्ती करनी होगी - उनके बारे मे राय बनाने से पहले उनको सुनने का उत्तम माहौल तैयार करना होगा - वो घर पर करने का काम है - उसके बारे मे इत्मिनान से बात करते हैं पहले एक तकनीकी पक्ष -
संगीत बजाना एक लम्बी कडी का काम है, रिकॊर्डिंग बहुत स्पष्ट हो, कापी किया हुआ या कम गुणवत्ता का या बहुत ही पुराना लाईव रिकॊर्ड किया संगीत वो मजा नही दे सकता , प्लेयर अच्छा हो, वायर्स मे कोई टूट-फ़ूट ना हो और स्पीकर को चलाने वाल उपकरण स्पीकर के मानकों के हिसाब का हो - खुले बाज़ार से कसवाए उपकरणों जिनके तकनीकी ब्योरे ना मिले, से बचना चाहिए - क्योंकी अलग-अलग उपकरणो मे ताल-मेल बिठाना पडता है और इस के लिए हर उपकरण के बारे में ये पता हो की वो किस प्रकार के दूसरे उपकरण के साथ बेहतर चलेगा. अगर इस सब से बचना हो तो अपने कानों को अच्छा लगने वाले डिब्बा-बंद सिस्टम जिसमें प्लेयर, एम्प्लिफ़ायर या रेसीवर और स्पीकर सब साथ आते हैं ही ले लेना चाहिए. उनकी परख पर आगे जानेंगे.
(डायनामिक-स्टेटिक हाईब्रिड)
अब अगली बात, डब्बे जैसे बजने वाले, उन्ची आवाज मे भर्राने वाले, कम आवाज मे संगीत की पूरी रेंज का मजा ना दे पाने वाले स्पीकर्स को सिरे से खारिज कर दो. इसके लिए अपने मन पसंद संगीत को किसी बेहतर से बेहतर माल बेचने वाली दुकान पर बेहतर टेस्ट-सेट अप में एकाधिक बार एकाधिक सिस्टम पे सुनो और उसके गुणों को समझो.
स्पीकर वो जो सुनाई ना दे - हां सही पढा आपने, स्पीकर वो जो (खुद) सुनाई ना दे - वो बस सुनाए! उसका काम संगीत को ज्यों का त्त्यों रखना है, अपने आप का कोई गुण प्रदर्शित करना नही है. आवाज ऐसे आए जैसे किसि पारदर्शी माध्यम से हो कर सीधे अपने मूल से आ रही है, रिकार्ड हुई पर गाने वाला या बजाने वाला यहीं है इतना सच्चा आभास हो सके.
अक्सर संगीत में हमें निचली आवृत्ती की आवाजें अच्छी लगती हैं मगर अधिकतर आवाजें मध्यम आवृत्ती की होती हैं और कुछ घंटी नुमा आवाजें उच्च आवृत्ती की होती हैं , इनका संतुलन हो और अपको इनको प्लेयर पर संतुलित करने की जरूरत ना पडे! कम आवाज में पूर्णता रहे और आवाज बढाने पर कर्कश ना हो - आवाज मे खालीपन ना हो और नकली भारीपन ना हो. अब एक आदर्श स्पीकर - वो माहौल को आवाज़ से एक सा लबालब भर दे - बिना कानों पर शोर-शराबे का बोझ डाले - ऐसा ना लगे कि इस या उस कोने से आवाजें आ रही हैं और हम सुन रहे हैं - छोटे स्पीकर्स में ये गुण नही हो सकता इस लिए आज कल छोटे स्पीकर्स का एक पूरा समुच्चय कमरे मे आव्यूह जैसा लगा दिया जाता है - जिसका कुल जमा काम कमरे को सीधी और परावर्तित ध्वनी से भर देना होता है मगर आकार छोटा होने से आप मध्यम आवृत्ती की ध्वनियों के साथ अगर काफ़ी नही तो कुछ हद तक ही सही, नाइंसाफ़ी कर ही दोगे - एक बात - संगीत सुनने का मजा परावर्तित ध्वनियाँ बढाती हैं - इसलिए, महौल बस संगीत ही सुनने के लिए, आदर्श तरीके से बनाने के लिए दो स्पीकर्स का कैसा जुगाड जमाते हैं वो आगे जानेंगे.
अगर रिकार्डिंग अच्छी है तो उसकी एक खासियत को हमरी जमावट ने खास जाहिर करना चाहिए - वो है हर वाद्य का दूरसे वाद्य से हर गायक की दूसरे गायक से पारस्परिक त्री-ज्यामितीय (थ्री डायमेंशनल) और ध्वनीय आपेक्षिकता (म्युज़िकल रिलेटिविटी) आपको माहैल में महसूस हो. कौन आगे बैठ कर बजा रहा है और कौन पीछे है, किसकी आवाज कब ज्यादा और कब कम ज़ाहिर की जा रही है -एक दम सटीक श्रव्य अनुभूती हो!
कुछ मुद्दे की बातें - आप एक ही स्पीकर के सेट पे संगीत और फ़िल्मों का या होम थिएटर का अनुभव अगर लेना चाहते हैं और वो भी बिल्कुल ही आदर्श तरीके से - मतलब की जब संगीत सुनें तो कंसर्ट हाल का अनुभव हो और जब फ़िल्म देखें तो सिनेमा हाल का - सोचिए क्या हम बस का काम ट्रक से लेते हैं या ट्रक का बस से? जहां जिस किस्म का परिवहन चाहिए -वाहन मे परिवर्तन होता ही है. ध्वनी के साथ भी यही सत्य है - फ़िर भी एक संतुलित सिस्टम कैसे बना सकते हैं ये देखेंगे आगे.
(प्लेनर-डायनामिक हाईब्रिड)
1 comment:
भाई साहब तकनीकि जानकारी तो आपने उम्दा दी ही है, भाँति भाथति के स्पीकर्स के चित्र तो निरंतर में फोटो फीचर बनाने के लायक है| जय हो आपकी |
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