बेचारा लल्लू!
पुरुष और स्त्री अलग अलग प्रकार के जीव हैं और दोनों एक दूसरे की खोपडी की कार्यप्रणाली समझ सकें इस लिए हजारों पुस्तकें उपलब्ध हैं - ठीक है साहब, अगर प्रेम कम है और दिल का काम दिमाग से ही लिया जाना है तो किताब पढ कर निभा लो.
अब इधर समान अधिकार पाने के मामले में पश्चिमी कोमलांगियाँ साक्षात रणचण्डी की प्रतिमूर्ती होती हैं - लिंग-भेद कानूनन अपराध है मगर जेंडर-प्रोफाईलिंग या लिंगाधारित विभेदन जोरदार होता है - विसंगतियाँ आह-और-वाह सी साथ साथ बहती हैं. तो स्त्री पुरुष अलग अलग प्रकार के जीव हैं वो कोमल हैं और संवेदनशील भी और हम अपरिष्कृत ढीठ हैं - धन्यवाद! मगर मरद की मजाल जो "अपवाद भी तो होते हैं" इतना भी बोल कर भाग पडे! अब १८-२५ साल की उम्र का पुरुष ज्यादा कार इन्शोरेंस दर देता है तब कोई स्त्री आ कर नही कहती की भई हम भी तेज भगाते हैं और सेल फ़ोन पे खी-खी करते हैं!
स्त्रीत्व का रंग गुलाबी है अगर पुरुष गुलाबी रंग पहन ले - हा-हा-कार! स्त्री भावुक फिल्में ही पसंद करती हैं और पुरुष मारपिटाई वाली, फ़ाडू-डरावनी-भूतहा, फुटबाल-सिरफुटव्वल-बाक्सिंग इत्यादी. चलो सिनेमा तक ठीक है की आप चहे जो हांक लो पर इधर और हजारों तरीके हैं जेंडर प्रोफ़ाईलिंग के जिनमे से लगभग सारे ही पुरुषों के ही खिलाफ़ जाते हैं!
हकीकत - सब बकवास बात है, आम तौर पे जितनी डरावनी पश्चिम की नारी होती है या पश्चिमीकृत भारतीय मूल की बालाएं होती हैं शायाद ही कोई और जीव होता हो. समाज नही है जसपाल भट्टी के उल्टा-पुल्टा का सीधा प्रसारण है साला! पर यार पुरुष भी ना, स्त्री-पुरुष संबंधों के मामले में कई काठ के उल्लू तो बहुत ही खुन्नस दिला देते हैं कसम से अब इन डायनिकाओं को भी पूरा दोष नही लगा सकते! एक केस स्टडी लो -
हाल ही में अँतर्यामिणी की मित्रता एक ऐसी ही डायनिका से हो गई है. वो हमारे यहाँ दो दिन के लिए सपति पधारीं - अब तक इस भारतीय एच-4 धारीणीं और उसके लल्लू मिय़ाँ द्वारा हमारे घर में उनकी आपसी चुम्मा-चाटी, गलबहिंयाँ डाले ही बैठना, पतीदास द्वारा पत्नी के पैर दबाना - फुट-मसाज देने के नाम पर इत्यादी क्रिया कलाप देख चुका हूँ. प्रेम का सार्वजनिक प्रदर्शन चल रहा है - बढिया है. भई आपसी सेवा होनी चाहिए. पत्नी के पैर दुख रहे हैं या नही पर् पति दबा रहा है - सुंदर दृश्य हो सकता है पत्नी पति की गोद में पैर रख के लेटी है, और वो फ़ुट मसाज दे रहा है इधर हम बैठे हैं नजारा देख रहे हैं - देखो इसे बोलते हैं आत्मसमर्पण! मुझे भी ना पता नही कैसे कैसे असमय विचार आते हैं, याद आ रहा है अगर किसी जीव को अनजाने पैर लग जाता था तो हमारे गाँव मे छू कर माफी माँग ली जाती थी, चलिए पति-पत्नी अलग मामला रहा और माना आप हमें इतना अपना मान रहे हैं की हमारा घर भी अपना लग रहा है अहोभाग्य अतिथिदेव-देवी परन्तु आखिर इस प्रेम-प्रदर्शन की सीमा रेखा क्या है? खयाल आया और आ कर चला गया. पैर दबते रहे - कोडेक मोमेंट, कैसे खीँचू और जवान के बाप को पहुचाउँ वाह बाउजी क्या प्रेमी सँतानें हैं कसम से - जहां जाती हैं प्रेम करती हैं.
मैडम की बातें, इन को लोगों को एनालाईज़ करने का शौक है, अभी एच-4 पे काम नही कर सकती हैं. अपने आस-पास के लोगों पर राय प्रकट करती हैं लल्लूपति निहाल हैं इनकी इस काबिलियत पर, बताते हैं दफ्तर का कोई भी निर्णय मैडम से पूछे बिना नही लेते - इस को बोलते हैं सहचारिणीं. मैडम दियाँ गल्लाँ, ये हर एक से ऊपर हैं - एमबीए कर के आई हैं. जय हो! जय हो!! अपन भी ढीठ हैं, स्याने भी - एक चुप सौ सुख. लल्लू को सीख नही दे सकते की बेटा पीठ टटोल और अपनी रीढ ढूँढ, ये प्रेम नही है मेरे लाल - मरने दो साले को!
लल्लू पढा लिखा आदमी है, बहुत चालाक और समझदार भी है, सफल भी - बहुत सफल! नेक भी है, पर यही होता है जब किसी गधा-हम्माल पढाकू के जीवन में जो पहली और एकमात्र लडकी आती है उसी पर लट्टू हो जाने पर. मूरख को लगता है किस्मत खुल गई जी वाह वाह, प्रेम पा गया - इधर समझ में आ रहा है -टाईम पर सही मुर्गा फांस लिया छोकरिया बडी तेज थी, जीनगीभर हलाल करेगी. प्रेम-विवाह - हेप्पीली मेर्रीड एवर आफ्टर!
अँतर्यामिणीं ने लल्लू के लिए मेरे मुखडे पर दुखडा देखा और डायनिका को सपति विदा करने के बाद आगे से ऐसा हृदयविदारक जोडा कभी ना आमंत्रित करने का निर्णय भी लिया. बेचारा लल्लू!
3 comments:
दूसरे का सुख देखकर जलते हो!यह अच्छी बात नहीं है स्वामीजी.शरदजोशी जी ने शायद इसी तरह
के अतिथियों से पीड़ित होकर लिखा है लेख--तुम कब जाओगे अतिथि?बहरहाल लेख मजेदार है.बधाई.
पाँच मिनट साथ सोने की कीमत जिंदगी भर उल्लू बनाकर वसूलना| यह डायलाग एक महिला कथाकार द्वारा, महिला पात्र के मुख से महिलाप्रधान कथा में कहा गया है| यहाँ बिल्कुल सही बैठता है और कहानीकार का नाम अभी याद नही|
इसे कहते हैं आदर्श हसबैन्ड मैटीरियल. खुशनसीब हैं डियनिका जी.
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